शनिवार, 19 मई 2012

संशोधित कार्टून का ड्राफ्ट और एक लघुत्तम

बा साहेब और मैड साहेब एक काँटेदार घेरे में हैं।
मैड साहेब सोफे पर आराम फरमा रहे हैं। 
बा साहेब एक दूसरे सोफे पर बैठने वाले हैं। 
बा साहेब की काँख में दबी किताब पर लिखा है - Tuition of India.
 दोनों के चेहरे ग़ायब हैं और संवाद यह हैं -
मैड साहेब,"!@#$%ं&*"
बा साहेब,"*&ं%$#@!"
घेरे के गेट पर लिखा है - बाहर सब च्युतिये हैं।
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बाप ने बेटे के हाथ से कॉमिक्स कार्टून वाली किताब छीन ली - कमबख्त! मरवायेगा क्या? इसमें साफा है, दाढ़ी है, हरे रंग का चोगा है, नीले रंग का सूट है, बाड़ भी है। आदमी भी हैं। ढेरो अक्षर अंक हैं - a b c d e f ....z 1,2,3,4 ...0 और किताबों के फोटो भी। कोई भी कम्बिनेशन खतरनाक हो सकता है। ...एक काम कर ये अलबम देख। किनारे की तस्वीरे हैं। कोई कपड़ा नहीं, कोई अक्षर नहीं, न इमारत, न काँटेदार तार, बस समुद्र और रेत ... दाढ़ी का तो सवाल ही नहीं उठता। 
बेटे ने कहा - पापा! सब नंग धड़ंग है, मुझे शर्म आती है। 
बाप ने कहा - जब तेरे बाप को शर्म नहीं आती तो तुम्हें क्यों आ रही है? अबे, सब नंगे ही होते हैं। शर्माना बन्द कर और अपना न सही बाप का खयाल कर कार्टून देखना, कॉमिक्स पढ़ना छोड़!   
मुँह छिपा कर मुस्कुराते हुये बेटा बुदबुदाया - नादान तो थे ही पापा, अब खिसकेले भी हो गये हैं। 
सोफे पर लेट छत निहारता बाप अपनी सोच के शब्दों से भय खा रहा था। उसे आगत मानसिक गूँगेपन का आभास हो चला था।
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नोट:
इस पोस्ट पर टिप्पणियों का विकल्प बन्द कर रहा हूँ क्यों कि एक शब्द विशेष (दुबारा लिख सकता हूँ लेकिन कोई तुक नहीं ) पर बेध्यानी आपत्तियों की सम्भावनायें हैं।  सम्भावनाओं को ताड़ कर तदनुरूप ऐक्शन लेने वाला ही सफल होता है इसलिये एक ताड़ना स्वयं के लिये भी। बात पहुँचाने में सफल होना चाहता हूँ।  

...वैसे आप एक बार 'च्युत' का अर्थ शब्दकोश में देखिये तो सही! ड्राफ्ट का अंतिम वाक्य कई अर्थ खोलेगा।