मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

हिन्दी ब्लॉगरी की दशकोत्सव यात्रा - 4

अधिकांश हिन्दी ब्लॉगर अब फेसबुक पर हैं/भी हैं - 'हैं' उनके लिये जो ब्लॉग का लगभग त्याग ही कर चुके हैं; 'भी हैं' उनके लिये जो दोनों स्थानों पर अपने को स्थापित किये हुये हैं। कुछ तो ट्विटर पर भी सक्रिय हैं। आज के समय की आवश्यकता है इंटरनेट जिसे कतिपय जन अब नागरिक 'मौलिक अधिकारों' में सम्मिलित करने की माँग भी करने लगे हैं। जीवन की आपा धापी में पारम्परिक दृष्टि से देखें तो एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से दूर हुआ है किंतु एक दृष्टि से देखें तो इतना पास हुआ है जितना कभी नहीं था। भूगोल, लिंग, पंथ आदि की सीमायें ध्वस्त हो चली हैं और सोशल साइटों के द्वारा लोग बेतहाशा एक दूसरे से सम्वादित हो चले हैं। इस के नकारात्मक पहलू भी हैं लेकिन विधेयात्मक पक्ष यह है कि इसने उन्हें भी अभिव्यक्ति दे दी है जिन्हें व्यवस्था ने चुप कर रखा था। स्त्रियाँ इतनी मुखर पहले कभी नहीं हुईं! और वे आधी जनसंख्या हैं। यह एक बहुत बड़ा परिवर्तन है जिसके प्रभाव जीवन के हर क्षेत्र में दिखने लगे हैं।
फेसबुक या ट्विटर के 'हिट' होने के पहले सम्वाद की त्वरा की आवश्यकता की पूर्ति ब्लॉग प्लेटफार्म करता था। परिणामत: अधिक जीवन्त लगता था। इनके आने से त्वरित और लघु सम्वाद एवं उनके अन्य प्रकार ब्लॉग से हट गये। ऊबे और त्वरा की प्रचुरता के आदी जन ने ब्लॉग को बीते युग की बात घोषित कर दी एवं फेसबुक पर ‘फुल्ल' या 'प्रफुल्ल टाइमर' हो गये। हिन्दी ब्लॉगरी में ऐसा अधिक दिखा लेकिन अन्य भाषाओं से तुलना करें या आज भी स्वयं हिन्दी ब्लॉग जगत की सक्रियता और गुणवत्ता देखें तो 'बीते युग की बात' बकवाद ही लगती है। सोशल साइट और ब्लॉग एक साथ चल रहे हैं और चलते रहेंगे।
फेसबुक त्वरित है। अधिकतर विचार या अभिव्यक्ति आते हैं और बिना परिपाक हुये छप जाते हैं। विविधता और नयापन तो प्रचुर हैं लेकिन विकसित करने में समय न दिये जाने के कारण गुणवत्ता और गहराई की कमी ही दिखती है। सुतली बम कस के बाँधा न जाय तो धमाके और प्रभाव में कमी हो जाती है! यदि उन्हीं फेसबुकिया विचारों या अभिव्यक्तियों को ब्लॉग पर परिवर्धित और थोड़ा समय दे परिमार्जित कर डाला जाय तो क्या बात हो! फेसबुकिया ब्लॉगर या ब्लॉगर फेसबुकिये ध्यान दें! 
2013 में हिन्दी ब्लॉगरी के दस वर्ष पूरे हो रहे हैं। इस अवसर पर मैंने सोचा कि क्यों न फेसबुक के उन जनों को हिन्दी ब्लॉगरी की झलकियाँ दिखाई जायँ जो इससे अनभिज्ञ हैं? फेसबुकिया शैली में ही बिना वर्तनी या व्याकरण पर अधिक ध्यान दिये मैंने ब्लॉग जगत का परिचय देना प्रारम्भ किया तो लोग रुचि लेने लगे। मित्र निवेदन और चैट सन्देश भी मिलने लगे। मैं सनातन कालयात्री आगे बढ़ता चला गया। शिवम मिश्र ने ब्लॉग बुलेटिन पर छापना चाहा तो मैंने कहा कि डाल दीजिये [जब सामने वाला पश्चात प्रभाव झेलने को तैयार है तो अपने को क्या?] उन्हों ने ये तीन लिंक छापे: 1, 2, 3 । वह चाहें तो इसे भी अपने यहाँ कॉपी पेस्ट कर सकते हैं, वहाँ रहने पर पहुँच बढ़ेगी ही।
फेसबुक पर ही इस घोषणा के बावजूद कि
हिन्दी ब्लॉगरी के दस वर्ष पूरे होने वाले हैं। अपनी पसन्द के लेख शेयर करता रहूँगा- दशकोत्सव की अपनी विधि! इसमें कोई 'राजनैतिक या गुटीय' मंतव्य न ढूँढ़े जायँ, प्लीज! ;)'परशुराम जी' ठाकुर विश्वामित्र और बाभन वशिष्ठ प्रकरण ले आये जिससे मामला तनि एक रोचक हुआ। कुछ जन बिदके भी लेकिन टिप्पणी का सार समझते हुये पब्लिक चुप ही रही! इस स्टेट्स पर नम्बरी बिलागर समीर लाल ने लिखा: jindaabaad!! किसका जिन्दाबाद? ये तो वही जानें।
आप सब अपने अपने ब्लॉगों पर कुछ नया करें। अपने बारे में कॉलर टाइट करते रहे, पल्लू लहराते रहे; अब दूजों की सोचें। छिपो को प्रगटो करें, प्रशंसा करें, उनके योगदान को चिह्नित करें।  फागुन का महीना आ ही रहा है, नमकीन या रंगीन भी हो सकते हैं।
कविता के मारे हैं तो गद्य का लठ्ठ भाँजें, चुपो रहे हैं तो अनुराग शर्मा, अर्चना चाव जी, पद्म सिंह, सलिल वर्मा, हिन्द युग्म, रेडियो प्लेबैक इंडिया आदि के सहजोग से मुखो हो पॉडकास्ट ट्राई करें। आवाज के मामले में निश्चिंत रहें, जब मेरी आवाज को भी पसन्द किया जा सकता है तो सबके पसन्दकर्ता उपलब्ध होंगे। अस्तु, आगे बढ़ते हैं।

फिल्मों पर लिखते हैं स्वघोषित आवारा मिहिर पंड्या अपने ब्लॉग http://mihirpandya.com पर। वह अपने इस ब्लॉग पर अनवरत रचना संसार सृजित कर रहे हैं। सेल्यूलाइड पर अमर कर दिए गए दृश्य, ध्वनियाँ, गीत, संगीत, भावनाएँ, प्रकाश, अन्धकार .... सबको बहुत बारीकी से विश्लेषित करते हैं और तह दर तह खोलते जाते हैं।
लाइट, कैमरा, ऐक्शन !!
ये तीन शब्द जो रचते हैं, उस पर बहुत कुछ रचा जा सकता है। ज़रा देखिए तो सही । बस समीक्षा नहीं, साहित्य भी मिलेगा। 
 
अंग्रेजी की मास्टरनी शेफाली पांडेय अपने को कुमाउँनी चेली कहती हैं। http://shefalipande.blogspot.in में ग़जब के व्यंग्य रचती हैं। स्वभाव से ही विरोधी हैं, पुरस्कारों की भी। ये बात और है कि 'जब मुझे पुरस्कार मिल जाता था तो मैं उन लोगों की बातों का पुरज़ोर विरोध करती थी जो पुरस्कारों की पारदर्शिता पर संदेह करते थे'  
राजस्थान की धरती से किशोर चौधरी के मित्र संजय व्यास ब्लॉग लिखते हैं http://sanjayvyasjod.blogspot.in/ अपने बारे में कहते हैं कि मुझे तैरना बिल्कुल नहीं आता लेकिन मरुस्थल की रेत पर लहरों सा आनन्द लेना हो तो इन्हें पढ़िये। राजस्थान का रंग है, गँवई प्रेक्षण हैं, खिलखिलाती लड़कियाँ भी हैं, कुछ कवितायें भी और कुछ अद्भुत गद्य भी। व्यक्तिगत कहूँ तो दोनों में मुझे ये अधिक पसन्द हैं।  
लखनवी विनय प्रजापति कम्प्यूटर तकनीकी के टिप्स देते हैं अपने ब्लॉग http://www.techprevue.com/ पर। अब अंग्रेजियाने लगे हैं। नज़र तखल्लुस (यही कहते हैं न?) से ग़जलियाते भी हैं और ब्लॉग की अलेक्सा वलेक्सा रैंकिंग कैसे दुरुस्त रहे इसका भी खयाल रखते हैं। कविताकोश पर भी पाये गये हैं। 
शिक्षा, विज्ञान, सामयिकी, कविता, ललित गद्य, स्त्री मुद्दे आदि में निष्णात हैं अल्पना वर्मा। व्योम के पार मध्य पूर्व से लिखा जाने वाला इनका ब्लॉग है http://alpana-verma.blogspot.in
वतन से दूर हैं लेकिन इसकी मिट्टी से खिंचते रहने की बात कहती हैं। इन्हों ने जावा स्क्रिप्ट एनेबल कर ब्लॉग से कॉपी पेस्ट बन्द कर रखा है :) गायन भी करती हैं।
उम्मतें http://ummaten.blogspot.in/ नाम से ब्लॉग रचते हैं अली सईद। सुन्दर ललित विचारपूर्ण गद्य लिखते हैं। लेफ्ट सेंटर चलते हुये कहते हैं जो जी चाहे ले लीजिये ! कोई कापी राईट नहीं !.
नहीं जी, इनका ट्रैफिक विभाग से सम्बन्ध नहीं, छत्तीसगढ़ शिक्षा में उच्च पद पर हैं।  
अलग तरह का साहित्य है ब्लॉगर नवीन रांगियाल के ब्लॉग औघट घाट http://aughatghat.blogspot.in पर। राजेश खन्ना के अवसान के बाद चुप हैं लेकिन ब्लॉग के पुराने लेख भी पठनीय हैं। उनके मित्र उनके बारे में लिखते हैं:क्‍या कहूं तुम्‍हें                                                                  
कि तुम जितने पुराने हो रहे हो
उतना ही ताजा बन पडे हो..
रंगों मे रहकर रंगहीन क्‍यों हो तुम
काफ्काई गद्य पढ़ना हो तो आई टी क्षेत्र से जुड़े युवा ब्लॉगर नीरज बसलियाल के ब्लॉग काँव काँव प्रकाशन लि. http://kaanv-kaanv.blogspot.in/ पर जाइये। कम सामग्री है लेकिन जो है वह कभी कभी गुरुदत्त के सिनेमाई बिम्बों सा भी लगता है।
दीपक बाबा अब कम बकबक http://deepakmystical.blogspot.in करते हैं लेकिन जो करते हैं अलगे अन्दाज में करते हैं। चचा जैसे जन इनके टाइप की ब्लॉगरी को ही ब्लॉगरी मानते हैं। बाकी तो साहित्त फाहित्त सभी रच लेते हैं! है कि नहीं?
रोटी की रोजी का टैम हो गया, फिर मिलते हैं।

18 टिप्‍पणियां:

  1. समय के कई रूप हैं, पल, पहर, दिन, माह आदि। प्रकृति भी स्वयं को व्यक्त करने में भिन्न कालखण्ड लेती है, बुलबुलों से लेकर भूकम्पन तक। सारे प्रकार बने रहेंगे, अपनी अपनी प्रकृति के अनुसार लोग स्थान बदलते रहेंगे।

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  2. बाबा, हमने एक और बात सोची थी कि एकदम नए और पिछले एक साल से नियमित लिख रहे ब्लॉगों के बारे में भी लिखा जाय. जब तक चिट्ठाजगत और ब्लॉगवाणी था, तब तक हम नियमित नए सम्मिलित हुए ब्लॉगों के बारे में जान जाते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं है. नए एग्रीगेटर भी सफल नहीं हैं. मेरे विचार से जिस भी पुराने ब्लॉगर के पास समय हो, वो कम से कम एक नए ब्लॉग के बारे में अपने ब्लॉग पर लिखे. इससे उस ब्लॉग से जुड़े और लोगों को भी नए ब्लॉग के बारे में पता चल जाएगा.
    किसी एक को ये कार्य नहीं सौंपा जा सकता क्योंकि नया अच्छा ब्लॉग ढूँढ़ पाना कठिन काम है और कोई एक व्यक्ति नहीं कर सकता.

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  3. बकबक : बकाबक
    वाह वाह क्या बात...

    आचार्य जी, तुसी सानु खुश कर दिता

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  4. लंबे अरसे से फेसबुक पर नहीं हूँ[जाने की फिलहाल इच्छा भी नहीं है] इसलिए ब्लोगरी[व अन्य]हलचल का कुछ मालूम ही नहीं चलता.
    अपने आप को इस 'आभासी दुनिया'से कटा मानती हूँ इसलिए आज खुद को यहाँ पाकर बहुत आश्चर्य हुआ और अच्छा भी लगा,बहुत-बहुत आभार.

    **ब्लॉग पर कॉपी -पेस्ट हाल ही में डिसेबल किया है[मजबूरन करना पड़ा].
    ..
    फेसबुक हो या ट्विटर ,ब्लॉग्गिंग का महत्व अपनी जगह रहेगा.बल्कि आज लोग पहले से बेहतर समझ रहे हैं.
    यू.के.की एक यूनिवर्सिटी जहाँ मेरी बेटी पढ़ती है वहाँ उनकी क्लास में इस साल से हर छात्र को अपना ब्लॉग बनाना आवश्यक कर दिया गया है और उस पर उन्हें ग्रेड भी दिए जाते हैं.
    भारत में भी देर-सबेर ऐसा होगा .


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    1. हम भारत की ’देर-सबेर’ की बाट जोह रहे हैं..जब हर पढ़ा-लिखा अपने को अभिव्यक्त करने को उद्यत हो!
      फेसबुक के सामने ब्लॉग को हमेशा बीस ही मानता हूँ...इतनी तीव्रता ठिठका देती है मुझे!

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  5. जय हो महाराज ... हम फेसबुक पर नज़रें टिकाये बैठे रहे ... आप यहाँ आ गए सरे राह चलते चलते ... चलिये कोई न ... यह यात्रा चलती रहे यही दुआ है !

    आज की ब्लॉग बुलेटिन १९ फरवरी, २ महान हस्तियाँ और कुछ ब्लॉग पोस्टें - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  6. चलिये चलते जाईये ...
    @ आराधना -नये ब्लॉगों के बारे में अब तक ये अनुभव रहा है कि नये ब्लॉगों पर सुधारकार्य करवा कर प्रस्तुत करते रहने से नये अच्छा लिखने लगते हैं ...हम भी नये थे ...अब भी नये हैं ...

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  7. blog=black and white television
    facebook=colour television
    twitter=led,lcd,smart televisin,

    samay ke saath saath bahut kuch badalta hai bas ek islaam ka kuch nahi badalta ...

    jai baba banaras.....

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  8. अब आप होलियाने का मौसम बना रहे हैं,
    कुछ अगुवा फ़गुवा चालु कीजिए तो रंग भी जमें। :)

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  9. अभिव्यक्ति के हर माध्यम के अपने मायने हैं | ब्लॉग्गिंग ने कहीं गहरी छाप छोड़ी है |

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  10. एक बढ़िया एग्रीगेटर की सख्त जरुरत है

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  11. एक श्रेणी ’हुआ हुआ - न हुआ न हुआ’ वाली भी हो सकती हैं, फ़ेसबुक पर हम उसी श्रेणी में हैं।
    इस बहाने से कई ब्लॉग्स पर जाना होगा, ये फ़ेसबुक की और फ़ेसबुक के सार्थक उपयोग की परिणति है। ऐसे प्रयोग चलते रहें।

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  12. शुक्रिया गिरिजेश जी.

    इस महत्वपूर्ण काम के लिए साधुवाद.शुभकामनाएं.

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  13. ब्लॉग व फ़ेसबुक का तालमेल भी कमाल का है।

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