रविवार, 20 अक्तूबर 2013

प्रसाद

जीवन की गति ऐसी ही है। गंगाजल वारुणी के लिये प्रयुक्त होने पर अपनी महिमा खो देता है किंतु वारुणी आराध्या देवी को समर्पित हो प्रसाद हो जाती है।   

3 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. :)
      अतिमोहनविभ्रमा तदानीं
      मदयन्ती खलु वारुणी निरागात् ।
      तमस: पदवीमदास्त्वमेना-
      मतिसम्माननया महासुरेभ्य:
      _____________
      और यह भी:
      http://pittpat.blogspot.in/2010/05/blog-post_8991.html

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