रविवार, 10 अप्रैल 2011

go to line no. 8

1 सेट = झुग्गी+कॉलोनी
2 बूढ़ा बाप+तीन बच्चे - माँ = भीख माँगते बच्चे+दारू पीता बाप
3 बेटी का इनकार = > बाप द्वारा यौन उत्पीड़न > बेटी वापस भीख माँगने
4 बाप की मौत = >  पॉलिटिक्स+धर्मबुद्धि=> चन्दे द्वारा दाह संस्कार
5 सबसेट = अकेले तीन बच्चे = > 6 बच्चों वाली रिक्शेवाली द्वारा शरण (?)
6 समीकरण = भीख माँगना जारी  + आमदनी रिक्शेवाली को
7 पॉलिटिक्स + धर्मबुद्धि = > अनाथालय को पत्र + समझदार शरीफ तटस्थ
8 रिक्शेवाली द्वारा बच्चों को सौंपने से इनकार = >  धमकी (मैं दलित हूँ)
9 परिणाम = पंडीजी, बाबूसाहब, सेठ जी, यादो जी सब सटक
10 दलित = >  पुलिस प्रशासन को शिकायत नहीं (कौन पचड़े में पड़े?)
11 एक नया प्रमेय = झुग्गियों को हटवा दिया जाय
12 डेरिवेशन में समस्यायें = (रिक्शेवाली+साहब नं 1), (कामवाली+साहब नं 2), (दूध वाला पंडित+साहब नं 3), (दूधवाला यादो+साहब नं 4) = > झुग्गियाँ वहीं रहेंगी
13 परिणाम: <रिक्शेवाली बच्चों पर काबिज रहेगी।> <वे भीख माँगते रहेंगे।><शरीफ लोग अब 'पैकेट दूध' पर शिफ्ट हो चुके हैं (पचड़े के पास भी न फटको!)>
14 पुन: पॉलिटिक्स + धर्मबुद्धि = > अनाथालय से फिर सम्पर्क
15  < start अनंत लूप >
16 go to line no. 8
17 stop (?)
18 end (?)

9 टिप्‍पणियां:

  1. नया अंदाज है..

    दुष्‍चक्र को अनन्‍त लूप का नाम दिया है आपने...

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  2. यह प्रमेय कोर्स में नहीं होता। संसद में भी चुनाव से ठीक पहले के सत्र में उठने की संभावना भी क्षीण हो चुकी है। कारण.. वोट, जाति गणित हल करने पर मिल जाता है, निर्धनता पर नहीं। इस पर जन समर्थन की संभावना नहीं के बराबर है। इसे कुछ सनकी लोग अनंत काल तक हल करते और अपने जैसे दूसरे सनकियों को पढ़ा कर मानसिक शांति पाते देखे गये हैं।

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  3. अपने समीकरण पहले नहीं सुलझ रहे, अब आप ये और नये घुम्मनहेड़ी लाद दो हम पर।

    @ देवेन्द्र पाण्डेय:
    मानसिक शांति? खैर, ठीक ही होगा आपका आकलन। देवेन्द्र भाई, आखिर आप नजदीक हो लखनऊ से।

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  4. यही लूप तो लूट रहा है देश को। सब अनाथ हैं इसके अन्दर।

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  5. आप केतना आलसी हैं हो ..आलस आलस में छोटका छोटका लाईन खैंच मारे हैं ..ई नहीं देखे कि केतना भारी समीकरण बन गया है ..ससुरा सूत्र भी नहीं याद है कि हल करने का कोशिश करें । महाराज बहुत भारी पोस्ट है जी ..

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  6. मुश्किलें इतनी बडी हैं हल हज़ारों चाहिये
    हैं हज़ारे इक मगर जग को हज़ारों चाहिये

    सोचने को बाध्य करती पोस्ट। दुख की बात है कि आम आदमी हर रोज़ हर मोड पर एक लडाई लड रहा है। वैसे हल (जीवन की) हर समस्या का होता है, हमें पसन्द आये या न आये, हम कर सकें या नहीं।

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  7. very nice post!

    i was the second one to read the post(after u)@10.30 mg

    wanted to be 1st post a comment but it appeared to be disabled by u............very sad dear!

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  8. बड़ा कठिन फारमूला निकाला है सरजी, हम तो दो दूनी..... देखकर भी चक्‍कर में पड़ जाते हैं.

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