बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

उत्तरोर्मि - मैं तुम्हें लिखती हूँ


स्वेद पगा तुम्हारा कोरा कागज बिछा है इस धरती। पुलक गात भर ममत्त्व सिहरती हूँ। उसी पर वही लिखती हूँ। न कहना कि इसमें कुछ नहीं! यह कम नहीं कि थम गये हैं धड़कन प्राण, जो कहती हूँ। मैं मरती हूँ।

कागज वही, खुला है इस रात वही श्रावणी वातायन और कुबेर भर गया है वसंत। झर झर झरती हूँ। मैं भीगती हूँ।

कमरे की छ्त है तारों भरा आसमान। सुना है तुमने कभी कूक कोई रातों में? नीरवता को समेट कहती हूँ, लोग कहते हैं कुहुकती हूँ। मैं तुम्हें कहती हूँ।


तुम सीझते हो – रह रह? संचित हैं युगों के बीज, तुम्हारी सोच मैं रत्नगर्भा रह रह। अँगड़ाइयाँ लेते हैं अनकहे अरमान रह रह। फूटती हूँ तुम्हारी आँच से। सहती हूँ। मैं हँसती हूँ।

मेरा आशीष सदा तुम्हें है। अपने सिर हाथ यूँ ही नहीं रखती बार बार! इस सीले कागज पर कैसे धरोगे हाथ जैसे रख देते हो मेरे मुँह पर? लो आज फिर कहती हूँ किसी जनम तुम थे मेरी कोखभार और किसी जनम खींच चोटी भागे बार बार। इस जनम लगती हूँ तुम्हारा अंग विस्तार कि अगले में खेलना है गोद में टपकाती लार! तुम्हें रचती हूँ और मरती हूँ हर बार। बुद्धू! कहाँ जीती हूँ? मैं तुम्हें रचती हूँ।

छोड़ो यूँ लिखना, आहें भरना, दूर से बातें बनाना। बस आ जाओ। न! कोई बहाना नहीं।
मेरा नाम लेना और खुल जायेगी टिकट खिड़की जंगल के परित्यक्त स्टेशन पर। हाथ हिलाना नभ की इकलौती परछाईं की ओर और पटरियाँ जुड़ जायेंगी। बस ट्रेन में बैठ लेना।
आ जाओ कि रिज की चट्टानें धुल दी हैं मैंने (अश्रु और स्वेद मुझे भी आते हैं)। 
आ जाओ कि बबूलों में बो दिये हैं काँटे अनेक।
साथ साथ लिखेंगे इबारतें अनेक। सूँघ लेना मेरी भूमा गन्ध (वही जिसे निज स्वेद सनी खाकी में पाते हो)।
मैं पा लूँगी घहरती कड़क झमझम बेमौसम (तुम्हीं तो हो ऋषियों के पर्जन्य!)
ठसक तुमसे है, तुम पर ही लदती हूँ।

मैं तुम्हें लिखती हूँ।
  
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ध्वनि मिश्रण: स्वयं 
सॉफ्टवेयर: Audacity
नेपथ्य संगीत:
Piano Acoustic Guitar Ballad, Artists: Jocelyn Enriquez, Kylie Rothfield, Julie Plug, Scott Iwata

11 टिप्‍पणियां:

  1. गजब का शिल्प, गद्यगीत कहूँ या काव्यलेख, भावों को घनीभूत करती संरचना..

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