शनिवार, 6 मई 2017

संस्कृत 'अङ्क', तेलुगू 'अंके', 'बाहुबली' और भावी राजनीति की आहट

भोजपुरी और संस्कृत शब्दों से चीन्हा परिचय का उद्देश्य यह है कि हम अपने शब्दों को जानें और उनका 'प्रयोग करें' दुहरा दूँ लिखने, बोलने, गाने आदि सबमें 'प्रयोग करें'। किसी भी भाषा के शब्द मात्र अक्षरों के समूह नहीं होते अपितु अपने अस्तित्त्व में इतिहास, रीति, संस्कृति, सामाजिक सत्य, साहित्य, छन्द, धुन, ताल, रागादि सबको समाहित किये रहते हैं। जिहादी उर्दू सिनेमा, अंग्रेजीकरण और प्राणहीन, सतही, गुदगुदिया छाप कथित साहित्य के दबाव और लगाव में जितनी हिन्दी दूषित हुई है और होती जा रही है, उतनी कोई अन्य भारतीय भाषा नहीं। हिन्दी वीथि से ही प्रदूषण अन्य देसभाषाओं में भी पहुँच रहा है।
सत्य है कि जीवंत भाषायें अन्यों से शब्द ले कर समृद्ध होती हैं किंतु मैं जिसकी बात कर रहा हूँ वह अपनाना नहीं, स्वयं को खो देने से सम्बन्धित है, द्वार वातायन खोल कर स्वयं को झञ्झा को सौंप देने से है।
पुनरुत्थान केवल राजनीतिक मार्ग से नहीं होता। जब राष्ट्र जगता है तो साहित्य, कला, विज्ञान, संगीत, समाज इत्यादि सभी क्षेत्रों में जागरण होता है। ऐसे कहा जा सकता है कि बिना इन सबके पुनरुत्थान नहीं हो सकता। पुनरुत्थान का अर्थ भूत में जाना नहीं, अपनी उखड़ती जडों को स्वयं का आधार दे सुदृढ़ और सुरक्षित कर नवोन्मेष से है। यदि यह चलता रहा हो राजनीति को विवश हो कर वही मार्ग पकड़ना पड़ेगा जो देश जाति के हित में होगा।
वर्तमान सरकार संक्रमण काल की है और इसकी अपनी सीमायें और विसंगतियाँ हैं। इससे जितना हो सकता था, हो चुका। अब पठार या पतन ही घटित होने हैं क्योंकि दिशा और दूरगामी चिंतन हैं ही नहीं। प्रदूषण का जो तर्क भाषा के लिये है वह इसके लिये भी है। द्वार वातायन इसने भी खोल रखे हैं और झञ्झा तो है ही। 'बाहुबली' के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विरोध और कुप्रचार अकारण नहीं हैं। विरोधियों को स्वतंत्रता पश्चात बहुत सावधानीपूर्वक बुने जाल टूटते दिखाई दे रहे हैं। 
ऐसे में हमें आगे भी देखना होगा, राजनीतिक विकल्पों पर भी सोचना होगा, आहटों को समझना होगा। आनन्द राजध्यक्ष जी ने 'बाहुबली' की एक सम्भावना पर ध्यान दिलाया है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि भविष्य़ की किसी दूरगामी योजना के अनुसार चन्द्र बाबू नायडू ऐसे प्रकल्पों के नेपथ्य में हैं? तेलुगू सिनेमा में नन्दमूरी तारक रामाराव के समय में हिन्दू नायकत्व भी केन्द्र में रहा और आज भी है। 
जिहादी उर्दू सिनेमा ने कितने हिन्दू नायकों पर कृतियाँ प्रस्तुत कीं और कब कीं, इस पर शोध रोचक होगा। आज भी प्रवृत्ति में कोई परिवर्तन नहीं है अपितु वे उसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। ध्यान रहे कि आज के समय में जन सामान्य के मनोरञ्जन से जुड़ी सबसे बड़ी विधा सिनेमा ही है।
ऐसे में बाहुबली के नेपथ्य में यदि किसी बृहद राजनीतिक विकल्प का मानचित्र है तो बहुत महत्त्वपूर्ण है। गौतमीपुत्र सातकर्णी हो या खारवेल, रामानुज हों या आदि शङ्कर, उत्तरापथ से इतर महापुरुषों के अवदान भी आज हिन्दू धर्म के बने रहने में महत्त्वपूर्ण हैं। उत्तर के स्थान पर पूरब, पश्चिम और दक्षिण के विकल्पों पर भी ध्यान रखना होगा।
कल के 'द हिन्दू' में चन्द्रबाबू नायडू सरकार द्वारा तेलुगू भाषा के सम्वर्द्धन से सम्बन्धित एक समाचार है। नवोन्मेषी राजनेता यदि भाषा पर भी गम्भीर हो तो उसे समझा जाना चाहिये। तेलुगू भाषा विकास समिति के सचिव श्री विजय भास्कर का कहना है कि तेलुगू भाषा में शब्द कम हैं और अङ्ग्रेजी से आयात करने के स्थान पर तेलुगू स्रोतों से ही नये शब्द बनाये जाने चाहिये। 
यह कुछ वैसा ही है जैसा हिन्दी के लिये शब्दावली विकसित करने के लिये संस्कृत को आधार बनाया गया जिसमें एक चूक जो हुई वह थी देसभाषाओं की उपेक्षा। जो संस्कृत शब्द घिस कर उनमें स्थापित थे या जो शब्द संस्कृत शब्दों के भी पुरनिया थे, उन्हें स्थान देना चाहिये था। कथित भदेस से बचने के नाम पर कृत्रिम प्राणहीन शब्द भी गढ़े गये जो प्रचलित नहीं हो पाये। अस्तु।
श्री भास्कर द्वारा सुझाया ढङ्ग व्यावहारिक है। जो आयातित शब्द गहरे पैठ गये हैं, उन्हें वैसे ही स्वीकारना है किंतु ऐसे आयातित शब्द जो अभी भी सतह पर हैं, उनके स्थान पर तेलुगू स्रोत वाले नये शब्द लाये जाने चाहिये। उन्होंने जो उदाहरण दिया है, वह भी रोचक है। तेलुगू में digitisation के लिये कोई शब्द नहीं है किंतु digit के लिये तेलुगू शब्द है 'अंके'। digitisation के लिये तेलुगू शब्द इसी 'अंके' से गढ़ा जाना चाहिये।
आप ध्यान दें तो पायेंगे कि 'अंके' तो संस्कृत 'अङ्क' ही है। देसभाषाओं के सोतों से शब्द गढ़ने पर संस्कृत रूप के विकल्प भी सामने आयेंगे जिनसे अपनी जड़ से जुड़ाव तो बढ़ेगा ही, संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं की मौलिक एकता भी उभर कर सामने आयेगी।
चन्द्रबाबू नायडू पर ध्यान अपेक्षित है। आनन्द जी के शब्दों में कहें तो 'माहिष्मती' का सम्बन्ध 'हैदराबाद-सिकन्दराबाद' के कृष्णा तट स्थित विकल्प 'अमरावती' से भी है। क्षेत्रीय राजनीतिक प्रतिद्वन्द्विता का एक पक्ष यह भी है। विपुल जलराशि के भीतर से शिशु को ऊपर उठाता हाथ प्रतीकात्मक अर्थ रखता है। देशघाती वल्मीकों की हताशा अकारण नहीं है। 

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