बुधवार, 18 अक्तूबर 2017

राम आ रहे हैं ... परमानंदं भरत: सत्यविक्रम:

राम आ रहे हैं, सुन कर भरत परमानंद में हैं - श्रुत्वा तु परमानन्दं भरतः सत्यविक्रमः। अयोध्यावासियों के लिये राजाज्ञा प्रसारित होती है - नगरवासी पवित्र हो कुलदेवता एवं सर्वसाधारण देवताओं के मंदिरों में सुगंधि, माला और वाद्य के साथ अर्चन करें - दैवतानि च सर्वाणि चैत्यानि नगरस्य च। 
सूत, वैतालिक, विरुदावली गाने वाले एवं पुराणज्ञ उनके स्वागत में कुशल बजनियों एवं नचनियों के साथ नंदिग्राम हेतु प्रस्थान करें।
... 
शत्रुघ्न व्यवस्था में लग गये- मार्ग के ऊँच नीच सम कर दिये जायँ। हिमशीतल जल का छिड़काव किया जाय - सिञ्चंतु पृथिवीं कृत्स्नां हिमशीतेन वारिणा। वीथियों के किनारे पताकायें फहरें, मार्ग पर पुष्प और लाजा बिखेर दिये जायँ। सूर्योदय के पूर्व ही भवनों की सजावट पूरी कर दी जाय - शोभयन्तु च वेश्मानि सूर्यस्योदयनं प्रति। 
पुष्प पंखुड़ियाँ बिखेर दी जायँ एवं सुगंधित पाँच रङ्गों (की अल्पनाओं) से राजमार्ग सजा दिया जाय - स्रग्दाममुक्तपुष्पैश्च सुगन्धैः पञ्चवर्णकैः। 
... 
अश्वारोही, गजारूढ़ योद्धा, रथी और पदाति सैनिक ध्वजायें लहराते चल पड़े। मातायें उनके साथ नंदिग्राम पहुँच गयीं। 
घोड़ों के खुरों, रथों, शंख एवं दुंदुभि के सम्मिलित नाद का ऐसा प्रभाव हुआ मानो मेदिनी काँप उठी! 
अश्वानां खुरशब्दैश्च रथनेमिस्वनेन च। 
शङ्खदुन्दुभिनादेन संचचालेव मेदिनी॥ 

... 
भरत की क्या स्थिति थी? 
उपवासकृशो दीनश्चीरकृष्णाजिनाम्बरः - उपवास से दुबले हो गये थे, दीन स्थिति में चीर वस्त्र और मृगचर्म पहने हुये थे। 
प्रसन्नता है कि सँभल नहीं रही, आशंका भी है कि क्या यह सच है। राम दिख नहीं रहे... 
भरत हनुमान से पूछ बैठे - कहीं अपनी (वानर) स्वभाव की चञ्चलता वश तो मुझे बनाने नहीं आ गये? कच्चिन्न खलु कापेयी सेव्यते चलचित्तता
हनुमान जी ने उत्तर दिया, "ध्यान से सुनिये, मुझे तो वानर सेना द्वारा गोमती नदी पार करने की ध्वनि सुनाई पड़ रही है - मन्ये वानरसेना सा नदीं तरति गोमतीम्। 
उड़ती धूल देखिये, साल वृक्ष शाखाओं का झूमना देखिये, मन्ने लागे कि वानर आ रहे हैं! 
रजोवर्षं समुद्भूतं पश्य वालुकिनीं प्रति। 
मन्ये सालवनं रम्यं लोलयन्ति प्लवङ्गमाः॥

आकाश में उड़ते विमान के लिये विमल चंद्र और तरुण सूर्य, दोनों की उपमायें हनुमान जी ने दीं - दृश्यते दूराद्विमलं चन्द्रसंनिभम् ... तरुणादित्यसंकाशं विमानं रामवाहनम्। 
जनघोष हुआ - यह तो राम हैं - रामोऽयमिति कीर्तितः
... 
भरत जी प्रमुदित हैं, बारम्बार स्वागत कर रहे हैं - राममासाद्य मुदितः पुनरेवाभ्यवादयत्। 
श्रीराम क्या करें? 
14 वर्ष बिछुड़न में बीते हैं, दीन मलीन अवस्था में भाई समक्ष है, अभिवादन कर रहा है, क्या करूँ? ... 

... 
स्नेह वात्सल्य उमड़ पड़ा। राजकीय स्वागत की मर्यादायें धरी रह गयीं। श्रीराम ने भरत को उठा गोद में बिठा आलिङ्गन में कस लिया (वैसे ही जैसे कभी बचपन में करते रहे होंगे)। 
 
तं समुत्थाप्य काकुत्स्थश्चिरस्याक्षिपथं गतम्
अङ्के भरतमारोप्य मुदितः परिषष्वजे
~~~~

2 टिप्‍पणियां:

  1. जय श्री राम !
    क्षमा ! यह तो सांप्रदायिक हो गया...

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन दीवा जलाना कब मना है ? - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

    जवाब देंहटाएं

कृपया विषय से सम्बन्धित टिप्पणी करें और सभ्याचरण बनाये रखें। प्रचार के उद्देश्य से की गयी या व्यापार सम्बन्धित टिप्पणियाँ स्वत: स्पैम में चली जाती हैं, जिनका उद्धार सम्भव नहीं। अग्रिम धन्यवाद।